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विनोद कांबली ने बताया की उनके और सचिन के साथ रमाकांत सर के पिता और बच्चे जैसे रिश्ते थे

विनोद कांबली ने बताया की उनके और सचिन के साथ रमाकांत सर के पिता और बच्चे जैसे रिश्ते थे

विनोद कांबली, रमाकांत आचरेकर और सचिन तेंदुलकर

गुरुवार की सुबह जब विनोद कांबली रमाकांत आचरेकर के आवास पर गए, तो उनके भावों ने सब कुछ बया कर दिया था| पूर्व भारतीय बल्लेबाज और आचरेकर के प्रसिद्ध वार्डों में से एक, इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे कि उनके 'सर'अब नहीं रहे| 

कुछ मिनट बाद, जब वह आचरेकर की अंतिम यात्रा के लिए अपने पूर्व टीम-साथी और पुराने दोस्त सचिन तेंदुलकर के साथ शामिल हुए, तो न ही तेंदुलकर और न ही कांबली अपने आंसुओ को रोक पाए| स्पोर्टस्टार से बात करते हुए भावुक कांबली ने बताया कि, “सचिन और मैंने सर के साथ एक पिता और बच्चे का रिश्ता शेयर किया हैं| यह हमारे लिए एक बड़ी क्षति है|"

अपने गुरु के बारे में बात करते हुए, कांबली ने कहा कि, “समय पर, हम (सचिन औ रवह) अभ्यास नहीं की कोशिश करते थे,लेकिन सर हमें किस भी तरह से वापस नेट में ले आते थे| उन्होंने मुझमें और सचिन में कुछ देखा और अन्य लोग भी थे| उन्होंने हर किसी को समय दिया|"
 
उन्होंने कहा कि, 'हमें क्रिकेट के जरिए खुद को अभिव्यक्त करने की आजादी दी| कोच और पिता का रिश्ता आजकल बहुत कम देखने को मिलता है| रमाकांत आचरेकर जैसा कभी कोई नहीं होगा| जब मैं आचरेकर सर से मिला, तब मैं सिर्फ 11 साल का था और हमारी क्रिकेट यात्रा कैसे शुरू हुई, पता ही नहीं चला| उन्होंने मेरे जीवन में बहुत बड़ी भूमिका निभाई हैं|"

उस समय कांबली भांडुप के एक स्थानीय स्कूल के छात्र थे| उन्होंने कहा कि, “उस स्कूल में क्रिकेट की कोई सुविधा नहीं थी| सर ने मुझे कहीं खेलते हुए देखा और मेरे माता-पिता से कहा कि मुझे शारदाश्रम विद्यामंदिर में भर्ती कराया जाए| इस तरह मैं शारदाश्रम गया|"

कांबली ने नए स्कूल में एक 'नई यात्रा' में तेंदुलकर के साथ, उन्होंने 1988 में शारदाश्रम विद्यामंदिर के लिए सेंट जेवियर्स हाई स्कूल, फोर्ट के खिलाफ हैरिस शील्ड सेमीफाइनल में रिकॉर्ड 664 रनो की साझेदारी की थी|

जिसने दोनों दोस्तों का जीवन बदल दिया था| कांबली ने कहा कि, "आचरेकर वह व्यक्ति थे, जिन्होंने मुझे सचमुच में बनाया था| मैं अब कोचिंग में हूँ और मैं हर चीज का पालन करना चाहता हूँ, जो उन्होंने हमें सिखाया हैं|"

एक कोच के रूप में, आचरेकर अपने शिष्यों को मूल बातो का अधिकार और जितना संभव हो उतना अभ्यास करने के लिए कहते थे| उन्होंने कहा कि,"लोग कहते हैं कि अभ्यास एक आदमी को पूर्ण बनाता है लेकिन उन्होंने हमें बताया कि 'सही अभ्यास एक आदमी को पूर्ण बनाता है'| वे शब्द अब भी मेरे कानों में गूंज रहे हैं| उन्होंने अभ्यास पर ध्यान केंद्रित किया| वह हर जगह और हर कदम पर वहाँ था|"
 
उन्होंने कहा कि, "चाहे वह व्यक्तिगत हो या क्रिकेट के बारे में, उन्होंने मेरे करियर में और मेरे निजी जीवन में भी बहुत मदद की है| उन्होंने हमसे कभी कभी नहीं कहा कि, 'अच्छा खेला'| वह चाहते थे कि हम अच्छा प्रदर्शन करें और दोहरा शतक बनाने के बाद भी वह हमसे पूछते कि हमने अपना विकेट क्यों गवाया? वह ऐसे थे|"
 

 
 

By Pooja Soni - 04 Jan, 2019

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