भारतीय दिग्गज क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, पूर्व भारतीय बल्लेबाज विनोद कांबली और प्रवीण आमरे ने गुरूवार को शोक सभा में अपने बचपन के कोच रमाकांत आचरेकर की यादों को ताजा किया| जहाँ सचिन ने बताया कि कैसे आचरेकर ने उन्हें देखने के बाद दोबारा अपनी प्राकृत ग्रिप को पकड़ने की सलाह दी|
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार तेंदुलकर ने याद करते हुए बताया कि, ‘‘मुझे अब भी याद है कि जब मैंने क्रिकेट खेलना शुरू किया था, हमारे पास सिर्फ एक ही बल्ला हुआ करता था, जो मेरे भाई अजीत तेंदुलकर का हुआ करता था| यह थोड़ा सा बड़ा था और मेरी ग्रिप हैंडल पर नीचे होती थी|"
उन्होंने कहा कि, ‘‘सर ने कुछ दिन के लिये यह देखा और फिर मुझे एक तरफ ले गये और मुझे बल्ले को थोड़ा ऊपर से पकड़ने के लिए कहा|"
पूर्व भारतीय कप्तान ने कहा कि, "सर ने मुझे खेलते हुए देखा और मुझ से कहा कि यह कारगर नहीं हो रहा हैं, क्योंकि मेरा बल्ले पर उस तरह से नियंत्रण नहीं बन पा रहा था और मेरे शाट भी नहीं लग रहे थे| यह देखने के बाद कि मेरा बल्ले पर वैसा ही नियंत्रण नहीं है, सर ने मुझे वो सब भूल जाने को कहा जो उन्होंने मुझे बताया था और मुझे पहले की ही ग्रिप से पकड़ने को कहा|"
उन्होंने कहा कि, ‘‘इससे सर ने मुझे ही नहीं बल्कि सभी को एक बहुत ही बड़ा संदेश दिया था कि कोचिंग का मतलब हमेशा बदलाव करना ही नहीं होता हैं| कभी -कभी यह अहम होता है कि कोचिंग नहीं दी जाये|"
महान बल्लेबाज ने कहा कि, ‘‘अगर मेरी ग्रिप बदल गयी होती तो मुझे लगता है कि मैं इतने लंबे समय तक नहीं खेला होता, लेकिन सर के पास दूरदृष्टि थी कि मेरा खेल कैसे बेहतर हो सकता है और मेरे लिये क्या बेहतत रहेगा|"
आचरेकर के दत्तक पुत्र नरेश चुरी ने एक किस्सा सुनाया कि कैसे दिवंगत कोच पुनर्नवीनीकरण गेंदों का इस्तेमाल करते थे| उन्होंने बताया कि, "सर हमेशा घिसी हुई गेंदों को संरक्षित करते थे, और ऐसी गेंदों का इस्तेमाल करते थे, जिन्हें कोई भी इस्तेमाल करना पसंद नहीं करता था|"
"हम सभी गेंद की बाहरी सतह को छीलते थे और आंतरिक हिस्से (छोटी गेंद) को मेरठ (उत्तर प्रदेश) में कारखाने में भेजते थे| वह पुनर्नवीनीकरण की गई गेंद को आधी कीमत में खरीद लेता था|"