शाहिद अफरीदी की टिप्पणियों का शिव सेना ने किया समर्थन

शाहिद अफरीदी

शिवसेना ने शुक्रवार को पाकिस्तानी क्रिकेटर शाहिद अफरीदी की उस टिप्पणी पर जोर देते हुए बयान दिया हैं, जिसमे उन्होंने ये कहा हैं कि उनका देश "कश्मीर नहीं चाहता" और कहा हैं कि सभी सच्चे पाकिस्तानी इस विचार का समर्थन करेंगे|

शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ ने लिखा हैं कि पाकिस्तान की सरकार और सैन्य प्रमुख ने देश को नियंत्रित करने से भारत को नुकसान पहुंचाने की कोशिश पर अधिक उत्साह दिया है जिसके परिणामस्वरूप इसे आजादी के 70 साल बाद भी बाहरी वित्तीय सहायता भी लेनी पड़ी है|

एक वीडियो में जो कि काफी वायरल हो रहा हैं, उसमे अफरीदी को ये कहते हुए सुना गया हैं कि, "मुझे विश्वास है कि पाकिस्तान कश्मीर नहीं चाहता है और भारत को भी राज्य नहीं दिया जाना चाहिए| कश्मीर एक स्वतंत्र देश होना चाहिए|" उन्होंने कहा कि "मानवता" या "इंसानियत" को प्राथमिकता दी जानी चाहिए|

वित्तीय संकट और सांप्रदायिक संघर्ष से जूझ रही अपने देश के मामलों पर कटाक्ष करते हुए पाकिस्तानी ऑलराउंडर ने कहा कि, "पाकिस्तान अपने चार प्रांतों को संभाल नहीं सकता|" अफरीदी ने बाद में इस मामले पर बात करते हुए, भारतीय मीडिया को उनकी टिप्पणियों का गलत मलतब निकालने का दोषी भी ठहराया|" इसके बाद अफरीदी ने अब कहा है कि "कश्मीर पाकिस्तान से संबंधित है|"

शिवसेना ने अपने संपादकीय में दावा किया है कि मौजूदा समय में पाकिस्तान आर्थिक दिवालियापन की कगार पर खड़ा है| अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास उसने 'बेल आउट' पैकेज की अपील की है| जिससे कि उस देश की आर्थिक दुर्दशा का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है| मुद्रा कोष ने पाकिस्तान के इस अनुरोध जब नामंजूर कर दिया, तो इमरान खान पर कटोरा लेकर चीन के दरवाजे पर जाने की नौबत आ गई|

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार सेना के संपादकीय ने शुक्रवार को कहा गया हैं कि, "पाकिस्तान आतंकवाद और भ्रष्टाचार का समर्थन करने की कोशिश में इतना गरीब हो गया हैं कि अब उनके पास प्रधान मंत्री के निवास से मवेशियों और वाहनों को बेचने का विकल्प ही बचा हैं|"

संपादकीय ने सवाल किया हैं कि,  "अगर देश को अपनी अर्थव्यवस्था को जिन्दा रखने के लिए वित्तीय ऑक्सीजन की जरूरत है, तो फिर वह कश्मीर का ख्याल कैसे रखेंगे? न सिर्फ अफरीदी, हर समझदार पाकिस्तानी एक ही विचार रखेगा| हालांकि, आम आदमी से कौन पूछता है?"  

उन्होंने कहा कि, "सरकार और सैन्य प्रमुख अपने लोगों के लिए अच्छा करने की तुलना में भारत को नुकसान पहुंचाने पर और अधिक प्रोत्साहन देते हैं| इसलिए, उन्हें आजादी के 70 साल बाद भी सहायता मांगनी पड़ रही हैं|" 

 
 

By Pooja Soni - 16 Nov, 2018

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