अधिकांश बंगालियों की तरह, खिलाड़ी भी दुर्गा पूजा दिवसों के लिए उत्सुकता से पूरे साल इंतजार करते थे| 'ढक' की आवाज उन्हें एक चुंबक की तरह बरशा स्पोर्टिंग पूजा पांडाल में खींचा करती थी| वह कभी नहीं जानते थे, कि पूजा के दिन कब गुजर जाते थे| समय अब बदल गया हैं|
लेकिन आज भी दुर्गा पूजा की भावना भारतीय क्रिकेट के 'दादा' सौरव गांगुली के अंदर समाई हुई हैं| वे पंडाल आज भी उन्हें अपने बचपन की तरह आकर्षित करते हैं, लेकिन अब वह पांडल हॉपिंग की लक्जरी बर्दाश्त नहीं कर पते हैं, क्योंकि वह इसकी बजाय आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं और शायद भीड़ उन्हें घेर भी लेती हैं|
ज़ी मीडिया के साथ एक विशेष साक्षात्कार में सौरव ने बताया कि, "मैं वास्तव में उन दिनों को याद करता हूँ| पूजा के दिनों मैं अपने माता-पिता की डांट की परवाह किये बिना, पांडल में दिन और रात समय बिताता था| हमारे बरशा पांडल की ढाकी (नाटक) पिछले 30 सालों से आ रही है| मैंने उसे साल भर से देखता आ रहा हूँ| यहाँ तक कि मैं नियमित रूप से ढक्स बजता था|"
अपने क्रिकेट दिनों के दौरान, सौरव को दुर्गा पूजा के दिनों के दौरान कई दिन कोलकाता से बाहर बिताने पड़ते थे| उन्होंने बताया कि, "वे दिन वास्तव में निराशाजनक थे| मैं अपने माता-पिता को फोन करता था और पूजा सजावट और उत्सव के मूड के बारे में पुछा करता था| अब मैं अपनी बेटी सना में भी इसी भावना को देखता हूँ|"
दुर्गा पूजा के दिन अक्सर बंगाली युवाओं के लिए वेलेंटाइन डेज बन जाते हैं| पूर्व भारतीय कप्तान ने हॅसते हुए बताया कि, "पूजा में रोमांटिक हवा का आनंद लेने का साहस कभी भी नहीं था| तब माता-पिता मुझ पर कड़ी नजर रखते थे और अब बेटी सना| आप जानते हैं, लड़कियां हमेशा अधिक केयरिंग और सतर्क रहती हैं|"