मंगलवार को प्रशासकों की समिति (सीओए) ने कहा हैं कि 22 जून को होने वाली बीसीसीआई की विशेष आम बैठक (एसजीएम) उनके अधिकारों को कमजोर करने की साजिश है और 18 जुलाई 2016 के उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार नीतिगत फैसले लेने के मामले में बीसीसीआई की एसजीएम का एकाधिकार नहीं है |
क्रिकबज की रिपोर्ट के अनुसार बीसीसीआई ने 20 मान्यता प्राप्त इकाइयों से सहमति लेने के बाद ही नई दिल्ली में इस बैठक के आयोजन को लेकर सर्कुलर जारी किया था, जिसमें विनोद राय के नेतृत्व वाली समिति के निर्णयों के संदर्भ में विभिन्न नीतिगत मुद्दों पर बात की जाएगी | लेकिन सीओए ने निर्देश जारी करते हुए इस बात को स्पष्ट कर दिया था कि इसके लिए सदस्यों को किसी भी तरह का वित्तीय खर्च (यात्रा भत्ता / महंगाई भत्ता) नहीं दिया जाएगा, क्योंकि बैठक के लिए पूर्व में स्वीकृति नहीं ली गई थी |
जिसके बाद बोर्ड के कार्यवाहक सचिव अमिताभ चौधरी ने इसके जवाब में सीओए पर आरोप लगाया था कि वे गैरपारदर्शी तरीको से बीसीसीआई का संचालन कर रहे हैं और यही कारण है कि वे एसजीएम को स्थगित करना चाहते हैं |
इसका जवाब देते हुए सीओए ने आरोप लगाते हुए चौधरी को पत्र लिखा है, जिसके अनुसार एसजीएम का असली इरादा प्रशासकों की समिति द्वारा लिए गए फैसलों को कमजोर करने का प्रयास करना है | जहाँ एक ओर चौधरी ने बीसीसीआई की आम सभा को 'सर्वोच्च' करार दिया हैं, तो वहीं दूसरी ओर सीओए ने इसे उच्चतम न्यायालय के आदेश को अनदेखा करना करार दिया हैं |
सीओए ने अपने पत्र में लिखा हैं कि, "आम सभा को सर्वोच्च करार देना माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों को अनदेखा करना हैं, जिसके चलते बीसीसीआई के पदाधिकारियों को प्रशासकों की समिति के नेतृत्व में और नियंत्रण में काम करने की आवश्यकता है |"
सीओए ने एक बार फिर चौधरी ने पूछा हैं कि आखिर क्यों एसजीएम के लिए पूर्व में स्वीकृति नहीं ली गई। थी | सीओए ने दोहराते हुए कहा हैं कि, "हम बीसीसीआई की समितियों को काम करने से रोकना नहीं चाहते, जब तक कि उनका काम सीओए की जिम्मेदारियों और निर्णयों से टकराव उत्पन्न न करे, ऐसी स्थिति में हमे हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा |"